Sunday, April 20, 2025
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टिहरी गढ़वाल के कुलदीप बिष्ट का ‘Fungoo’ ब्रांड से आत्मनिर्भर की ओर बढ़ते कदम

(Influencer Media) : ये कहानी है टिहरी गढ़वाल के एक छोटे से गांव भैंसकोटी में रहने वाले कुलदीप बिष्ट की, जो कभी पढ़ाई और नौकरी के लिए शहर चले गए थे। लेकिन आज, गांव में रहकर मशरूम की खेती कर रहे हैं और इससे लाखों का मुनाफा भी कमा रहे हैं। कुलदीप बिष्ट का सफर उन सभी लोगों के लिए प्रेरणादायक है जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए कठिन परिश्रम करने से नहीं कतराते है ।

कुलदीप बिष्ट का प्रारंभिक जीवन

टिहरी गढ़वाल के छोटे से गांव भैंसकोटी में जन्मे और पले-बढ़े कुलदीप बिष्ट ने बचपन से अपने दादा जी को खेती -किसानी करते देखा था। हालांकि, कुलदीप के पिता एक अध्यापक हैं और वह चाहते थे कि कुलदीप भी पढ़ाई करके कोई अच्छी नौकरी करें। इसी सोच के साथ उन्होंने कुलदीप को MBA करने के लिए गाज़ियाबाद भेजा।

शहर की ओर कदम

MBA करने के बाद पढ़ाई के बाद, कुलदीप एक प्रतिष्ठित बैंक में नौकरी करने लगे। लेकिन खेती के प्रति अपने लगाव के कारण उन्हें हमेशा लगता था कि इस क्षेत्र में कुछ काम करना चाहिए। कुलदीप के दादाजी पहले सिंचाई विभाग में काम करते थे और बाद में उन्होंने अपनी ज़मीन पर 250 से 300 फलों के पेड़ लगाए थे। कुलदीप भी उनकी देखभाल में उनका साथ देते थे।

मशरूम खेती की ओर रुझान

हालांकि, देहरादून के आस-पास का इलाका मशरूम की खेती के लिए जाना जाता है, लेकिन 2017 तक उनके गांव में ज्यादा लोग इसकी खेती नहीं करते थे। तभी कुलदीप के दिमाग में मशरूम की खेती से जुड़ने का ख्याल आया और उन्होंने खुद की जमा पूंजी लगाकर एक छोटी सी शुरुआत की ।

शुरुआती संघर्ष और सफलता

कुलदीप कहते हैं, “मेरे दोस्त ने इस काम में मेरा साथ दिया और हमने अपनी सेविंग्स के तक़रीबन 40 हजार रुपये लगाकर मशरूम उगाने का काम शुरू किया। किराये पर एक कमरा लिया और उस दौरान हम दिन में नौकरी करते थे और रात को खेती।” पहली बार में हमें मशरूम का अच्छा उत्पादन हुआ , जिससे हमारा हौसला और बढ़ गया। हमने करीब एक साल नौकरी के साथ ही मशरूम उत्पादन का काम किया।

नई किस्मों की खेती

धीरे-धीरे हमने बटन, ऑयस्टर, मिल्की मशरूम के साथ गेनोडर्मा, शीटाके जैसी किस्मों के मशरूम उगाना और इसकी अलग-अलग जगह से प्रशिक्षण लेना शुरू किया। आखिरकार, एक साल बाद हम दोनों दोस्तों ने नौकरी छोड़कर JMD Farms के नाम से कंपनी की शुरूआत की ।

बाय-प्रोडक्ट्स का निर्माण

जैसे-जैसे काम बढ़ने लगा, तो हमने देहरादून और टिहरी में प्रोडक्शन बढ़ा दिया। फ्रेश मशरूम के अलावा, जो मशरूम बच जाते थे, उनसे हम बाय-प्रोडक्ट्स बनाने लगे। फिलहाल हम मशरूम से अचार, मुरब्बा, बिस्कुट और ड्राई पाउडर सहित कई प्रोडक्ट्स बना रहे हैं और आने वाले दिनों में नूडल्स और मशरूम का च्यवनप्राश बनाने पर भी विचार कर रहे हैं।

‘Fungoo’ ब्रांड का विस्तार

अपने प्रोडक्ट्स को हमने ‘Fungoo’ ब्रांड नाम के साथ बाजार में उतारा । लॉकडाउन के बाद, हमारा काम जब कम हो गया था, तब हमने गांव की महिलाओं को भी ट्रेनिंग देना शुरू किया। हमने यह ट्रेनिंग मुफ्त में ही मुहैया करवाई। इस ट्रेनिंग प्रोग्राम से आगे हमे काफी फायदा भी हुआ है और गांव में मशरूम उत्पादन के लिए किसानों का एक बड़ा समूह बनकर तैयार हुआ ।

स्थानीय समुदाय का सहयोग

हम फिलहाल इन किसानों से मशरूम खरीदकर बाय-प्रोडक्ट्स बना रहे हैं। अब तक 2500 लोगों को ट्रेनिंग भी दे चुके हैं।

कुलदीप का यह कदम न सिर्फ उनके लिए बल्कि पूरे गांव के लिए भी फायदे का सौदा साबित हुआ है। गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में उनका योगदान सराहनीय है।

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