Monday, February 24, 2025
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IPS अधिकारी वीरेंद्र मिश्रा ने 5,000 बच्चियों को वेश्यावृत्ति से बचाकर उनका जीवन संवारा

(मोहन भुलानी, Influencer Media) : मध्य प्रदेश के राजगढ़ जनपद में बेड़िया जनजाति के लोग बहुतायत में रहते हैं , जिनकी ऐतिहासिक पहचान गायन, नृत्य और मनोरंजन से जुड़ी रही है। मुगल काल से ही यह जनजाति अपनी कला के लिए जानी जाती थी। हालाँकि, आज़ादी के बाद इनके पारंपरिक पेशे को संरक्षण और सम्मान नहीं मिला, जिससे उनके सामने रोज़गार का संकट उत्पन्न हो गया। इस आर्थिक तंगी और सामाजिक उपेक्षा के कारण बेड़िया समुदाय की महिलाओं को मजबूरन वेश्यावृत्ति जैसे पेशे को अपनाना पड़ा। बेड़िया जनजाति की अधिकतर औरतें और बच्चियाँ वेश्यावृत्ति के काम में संलिप्त हैं, यही नहीं लड़कियों को कम उम्र में मजबूरन वेश्यावृत्ति का काम करना पड़ता है. इनकी भावी पीढ़ी का भविष्य उज्जवल हो और वो वेश्यावृत्ति के रूप में काम न करें, इसकी पुरजोर कोशिश करने में सन 2007 से जुटे हैं एक जुझारू IPS ऑफ़िसर वीरेंद्र कुमार मिश्रा।

उनके प्रयासों से बेड़िया समुदाय की कई महिलाओं और बच्चियों को वेश्यावृत्ति से मुक्ति मिली है और उन्हें एक सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर मिला है। उनकी पहल ने बेड़िया समुदाय में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाई है और कई बच्चियों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित किया है।

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2007 में, वीरेंद्र कुमार मिश्रा ने बेड़िया गाँव का दौरा किया और वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेली गई छोटी बच्चियों की दुर्दशा देखकर व्यथित हुए। उन्होंने सरकारी स्कूलों में गुर्जर के रूप में दर्ज बच्चों की पहचान छुपाने की मजबूरी को भी नज़दीक से देखा। उस समय, बेड़िया समुदाय के प्रति सामाजिक कलंक और भेदभाव चरम पर था। परिवर्तन की शुरुआत तब हुई जब मिश्रा 2010 में 13 बेड़िया बच्चों को शिक्षा के लिए भोपाल ले आए। शुरुआत में, उन्होंने भोपाल की मलिन बस्तियों में बच्चों को शिक्षित करने और पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित किया। 2007 में, राजगढ़ में विशेष जिला पुलिस अधिकारी के रूप में तैनाती के दौरान, मिश्रा का बेड़िया समुदाय से गहरा जुड़ाव हुआ और उन्होंने उनके उत्थान के लिए काम करने का संकल्प लिया।

इस कर्मठ अधिकारी ने अपने संगठन ‘संवेदना’ के माध्यम से मध्य प्रदेश के 60 गांवों में रहने वाली बेड़िया जनजाति के लगभग 5000 बच्चों के जीवन को सुधारा है। इस जनजाति के प्रति सामाजिक भेदभाव और रोजगार के अभाव के कारण लड़कियां वेश्यावृत्ति की ओर धकेली जाती थीं और लड़के दलाल बनने को मजबूर होते थे। कई बच्चों को अपने पिता की पहचान तक नहीं थी। इन बच्चों की इस दयनीय स्थिति को देखकर वीरेंद्र जी ने ‘संवेदना’ नामक संगठन की स्थापना की और उनके जीवन में बदलाव लाने का बीड़ा उठाया।

समवेदना की इस मुहिम के पीछे वीरेंद्र मिश्रा की दूरदर्शिता और समर्पण है। एक आईपीएस अधिकारी होने के साथ-साथ वे एक समाजसेवी भी हैं। उन्होंने बेड़िया समुदाय की दुर्दशा को नज़दीक से देखा और उनके उत्थान के लिए समवेदना की नींव रखी। उनकी टीम ने गांव-गांव जाकर लोगों से संपर्क किया, उनका विश्वास जीता और उन्हें शिक्षा के महत्व को समझाया।

शुरुआत में लोगों ने संदेह की नज़र से देखा, लेकिन धीरे-धीरे समवेदना ने अपना काम दिखाना शुरू किया। उन्होंने न सिर्फ बच्चों को शिक्षा दिलाई, बल्कि गांवों में सड़क, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध कराईं। इससे लोगों का विश्वास बढ़ा और वे समवेदना के साथ जुड़ने लगे।

वर्तमान में वीरेंद्र जी भोपाल में AIG (Madhya Pradesh State Industrial Security Force) के रूप में तैनात हैं। उनका कहना है कि फिलहाल उनके संगठन में कॉलेजों में 26 और स्कूलों में 37 छात्र हैं। वे इन्हें मुख्यधारा में शामिल करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं।

वीरेंद्र मिश्रा द्वारा स्थापित एनजीओ, संवेदना की कार्यक्रम समन्वयक मृणालिनी मिश्रा कहती हैं। संवेदना ने बेड़िया समुदाय के 5,000 से अधिक युवा लड़कियों और लड़कों को अपनी जाति से जुड़े कलंक को तोड़ने और उच्च शिक्षा, और बेहतर भविष्य हासिल करने में मदद की है।

वीरेंद्र जी का मानना है कि अवसर उत्पन्न करना महत्वपूर्ण है। जब आप अवसर उत्पन्न करते हैं तो आशा जगाते हैं और जब आशा जगती है तो लोग अपनी सीमाओं को पार करने लगते हैं। उन्हें अपनी मदद खुद करनी होगी। हम केवल सुविधा प्रदान करने वाले हैं। हम इस जाति की नई पीढ़ी को सेक्स वर्कर बनने से रोकने और उन्हें शिक्षित कर आगे बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयासरत रहेंगे।

संवेदना ने मानव तस्करी को रोकने के लिए एक नया कार्यक्षेत्र शुरू किया। “देश में RACE – रिसर्च, एडवोकेसी एंड कैपेसिटी बिल्डिंग अगेंस्ट एक्सप्लॉयटेशन नामक पहली मानव तस्करी विरोधी प्रयोगशाला शुरू की। मानव तस्करी को रोकने पर अनुसंधान और वकालत के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (TISS), मध्य प्रदेश पुलिस और गुजरात विश्वविद्यालय जैसे विभिन्न हितधारकों के साथ हमारे समझौता ज्ञापन हैं,

मानव तस्करी पर अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ IPS वीरेंद्र जी की यह मुहिम रंग ला रही है। उनके संगठन में पढ़ रहे कई बच्चे अब पुलिस अधिकारी, इंजीनियर और डॉक्टर बनने का सपना देख रहे हैं। वीरेंद्र जी का मानना है कि हर नागरिक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे समुदायों के बच्चों को बेहतर शिक्षा मिले और भेदभाव से मुक्त अच्छा जीवन मिले।

शिक्षा द्वारा स्वतंत्रता की ओर

2012 में, संवेदना टीम ने राजगढ़ जिले के दो गाँवों में बेड़िया समुदाय के उत्थान के लिए कार्य प्रारंभ किया। इस पहल का विस्तार अन्य जिलों में भी किया गया जहाँ यह समुदाय निवास करता है। उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों को भोपाल में छात्रावास की सुविधा प्रदान की जाती है। संवेदना, बच्चों की शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए “उड़ान” और “लक्ष्य” नामक दो छात्रवृत्ति प्रदान करती है। “उड़ान” स्कूली छात्रों के लिए है, जबकि “लक्ष्य” उच्च शिक्षा के इच्छुक छात्रों के लिए है। ये छात्रवृत्तियाँ ट्यूशन फीस और रहने के खर्च को कवर करती हैं। कक्षा 12 में 50% से अधिक अंक प्राप्त करने वाले छात्र इनके लिए आवेदन कर सकते हैं।

छात्रवृत्ति के लिए चयन, छात्र की आर्थिक स्थिति, क्षमता, और शिक्षा के प्रति रुचि के आधार पर किया जाता है। चयनित छात्र के परिवार को कुल खर्च का 25% योगदान करना होता है। उन्हें यह भी वचन देना होता है कि वे अपनी बेटी को वेश्यावृत्ति में नहीं धकेलेंगे और न ही शिक्षा के खर्च को इस माध्यम से अर्जित धन से पूरा करेंगे। छोटे बच्चों की शिक्षा के लिए, संवेदना ने बेड़िया समुदाय के शिक्षकों को नियुक्त किया है, क्योंकि वे समुदाय में आसानी से स्वीकार्य होते हैं। संवेदना टीम ने सीखने की प्रक्रिया को रोचक बनाने के लिए एक विशेष पाठ्यक्रम और विभिन्न गतिविधियाँ विकसित की हैं।

संवेदना के गाँवों में 40 से अधिक शिक्षक और बाल मित्र हैं, जो बेड़िया समुदाय और सरकार के बीच सेतु का कार्य करते हैं। ये सरकारी योजनाओं तक पहुँचने में समुदाय की सहायता करते हैं। संवेदना टीम ने अपने सर्वेक्षणों के माध्यम से मध्य प्रदेश के 18 जिलों में बेड़िया समुदाय की उपस्थिति का पता लगाया है। वर्तमान में, संवेदना उन 6 जिलों के 60 गाँवों में कार्यरत है जहाँ इस समुदाय की आबादी अधिक है।

इस पहल के परिणामस्वरूप, बच्चों में जागरूकता बढ़ी है और उन्हें उपलब्ध विकल्पों की जानकारी मिली है। उच्च कक्षाओं या कॉलेज में पढ़ रहे बच्चे, गाँव के अन्य बच्चों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए हैं।

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