(मोहन भुलानी, INFLUENCER) : जहां आम का जायका सभी को भाता है, चाहे वो बच्चे हों या उम्रदराज व्यक्ति। यहाँ तक कि कच्चे आम का स्वाद भी यहाँ के लोगों को बहुत पसंद है, जिसे वे नमक छिड़क कर खाना पसंद करते हैं। इसी प्राथमिकता को देखते हुए, बड़ी कंपनियों ने कच्चे आम के स्वाद वाली कई कैंडीज बाजार में उतारी हैं। पारले ने कच्चा मैंगो बाइट जैसे उत्पाद पेश किए हैं, और अन्य कंपनियों ने भी कच्चे आम के स्वाद पर आधारित टॉफी और कैंडीज बनाई हैं। आश्चर्यजनक रूप से, भारत में बिकने वाली 50% से अधिक कैंडीज मैंगो फ्लेवर वाली होती हैं। इस मार्केट अनुसंधान के आधार पर, कई बड़ी कंपनियों ने मैंगो फ्लेवर वाली टॉफी और कैंडीज बाजार में उतारी हैं। इस प्रतिस्पर्धी बाजार में, 2015 में एक कंपनी ने अपनी कच्चे आम की टॉफी लॉन्च की, जिसकी कीमत मात्र एक रुपये थी, और इसने बहुत कम समय में 300 करोड़ से अधिक का व्यापार किया।
D.S. Group, जो तुलसी, बाबा तंबाकू, राजनीगंधा, पर्ल इलायची और कैच मसालों का निर्माण करती है, ने 2015 में पल्स कैंडी को भारतीय बाजार में पेश किया। इस कैंडी का स्वाद लोगों को इतना भाया कि इसकी मांग तेजी से बढ़ी और यह जल्द ही देशी-विदेशी कंपनियों को पीछे छोड़ते हुए भारतीय बाजार में अपना एक मजबूत स्थान बना चुकी है।
“DS Group” कंपनी, जिसने मैंगो फ्लेवर पल्स कैंडी का निर्माण किया, की स्थापना 1929 में हुई थी। यह कंपनी भारत में एक ऐसी कैंडी लाने की योजना बना रही थी जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करे। भारतीय कैंडी बाजार में पहले से ही कई बड़े ब्रांड्स ने विभिन्न फ्लेवर्स की कैंडीज पेश की थीं। DS Group ने बाजार पर एक गहन अध्ययन किया और पाया कि भारतीय लोग आम और कच्चे आम के स्वाद को बहुत पसंद करते हैं, और कैंडी बाजार में आम फ्लेवर की कैंडीज का हिस्सा 50% है। इस शोध के परिणामों को देखते हुए, कंपनी ने भारतीय कैंडी बाजार में कुछ नया करने की ठानी।
भारतीय उपभोक्ताओं से प्राप्त अनूठे विचार के अनुसार, DS Group की मार्केट रिसर्च टीम ने पाया कि भारतीयों को कच्चे आम का स्वाद और उस पर लगा मसाला बहुत भाता है, जिससे उसका स्वाद खट्टा-मीठा हो जाता है। इस विचार को अपनाते हुए, कंपनी ने अपनी नई कैंडी में एक विशेष मसाला भरा, जिससे कैंडी खाने वाले को पहले कच्चे आम का स्वाद मिलता है, और फिर धीरे-धीरे कैंडी के बीच में छिपे मसाले का स्वाद आने लगता है, जिससे कैंडी का स्वाद और भी बढ़ जाता है।
कंपनी का प्रयोग सफल सिद्ध हुआ
डी.एस. ग्रुप ने पहली बार फरवरी 2015 में गुजरात राज्य में इस कैंडी का परीक्षण किया। गुजरात के लोगों को इस कैंडी का स्वाद इतना भाया कि मांग निरंतर बढ़ती गई। कई लोगों ने तो कैंडी के डिब्बे खरीदने शुरू कर दिए, जिससे कंपनी की आपूर्ति में कमी आने लगी और कुछ नकली कंपनियों ने इसकी नकल भी बनाना शुरू कर दिया।
कंपनी ने जल्दी ही अन्य निर्माण इकाइयों के साथ समझौते कर बढ़ती मांग को पूरा किया और भारत भर में इसकी आपूर्ति शुरू कर दी। डी.एस. ग्रुप के पहले से ही बाजार में मौजूद बड़े उत्पादों की मार्केटिंग और वितरण टीमों ने पूरे देश में अपनी मजबूत पकड़ बना रखी थी, जिससे Pulse Candy को बाजार में पहुंचाने में कोई कठिनाई नहीं हुई।
इस कैंडी की सफलता का आलम यह था कि जहां अन्य कंपनियों को नए उत्पादों को बाजार में उतारने के बाद विज्ञापन पर निर्भर रहना पड़ता था, वहीं इस कैंडी को लोगों तक पहुंचाने के लिए कंपनी को शुरुआत में किसी भी प्रकार का विज्ञापन खर्च नहीं करना पड़ा।
कंपनी के अनुसार, पल्स कैंडी की खासियत यह थी कि जहां आमतौर पर लोग किसी भी उत्पाद को उसके ब्रांड नाम से पहचानते और खरीदते हैं, वहीं लोग इस कैंडी को उसके स्वाद के लिए खरीद रहे थे। लोग स्वतः ही अपने मित्रों और रिश्तेदारों को कैंडी के बारे में बता रहे थे। कंपनी का मानना है कि कैंडी के इतिहास में शायद यह पहली बार था कि किसी कैंडी का प्रचार उपभोक्ताओं द्वारा स्वयं ही किया गया हो।
पल्स कैंडी ने बाजार में तीन साल तक शीर्ष स्थान बनाए रखा। जहां अन्य बड़े ब्रांड्स को भारतीय बाजार में अपनी जगह बनाने में सालों लगे, पल्स ने बहुत कम समय में ही सबसे आगे निकल गया। इससे पहले इटली की एक कंपनी की कैंडी भी लोकप्रिय थी, लेकिन पल्स ने जल्दी ही लोगों का दिल जीत लिया।
बाजार में पल्स जैसी दिखने वाली नकली कैंडीज आने के बावजूद, पल्स की लोकप्रियता पर कोई असर नहीं पड़ा। नकली कैंडीज असफल रहीं क्योंकि उनमें पल्स का स्वाद नहीं था। लोगों ने उन्हें नकार दिया और पल्स की नकल करने की कोशिश करने वाली अन्य कंपनियों को भी असफलता ही हाथ लगी।
कंपनी ने पल्स कैंडी की पैकिंग पर भी खास ध्यान दिया। उन्होंने इसके रैपर को हरे और काले रंग में बनाया, जो दूर से ही आकर्षक लगता है और लोगों को अपनी ओर खींचता है। यह रिसर्च भी सफल रही और रैपर की वजह से कैंडी और भी खास बन गई। लोगों को इसका स्वाद इतना पसंद आया कि वे इसे बार-बार खरीदते रहे।
पल्स कैंडी की मांग में उछाल
पल्स कैंडी का अनूठा स्वाद इसे लोकप्रियता की ऊँचाइयों पर ले गया। कंपनी ने उत्पादन को भी उसी गति से बढ़ाया जिस गति से मांग बढ़ रही थी। आज, इस कैंडी का स्वाद हर उम्र के लोगों की जुबान पर छा गया है। पल्स कैंडी की अपार सफलता ने इसे भारत की धड़कन बना दिया है। गुजरात में शुरुआत के बाद, पल्स की मांग को पूरा करना कंपनी के लिए एक चुनौती बन गया, क्योंकि रातों-रात स्टॉक समाप्त हो जा रहा था और बिक्री उत्पादन से अधिक हो रही थी।
दुकानदारों ने पल्स कैंडी के डिब्बों को मूल्य से अधिक में बेचना शुरू कर दिया, जिसका अनुमान DS Group को नहीं था। उन्होंने तुरंत अन्य उत्पादन इकाइयों के साथ समझौते किए और भारत भर में पल्स कैंडी की आपूर्ति शुरू कर दी।
2016 में, पल्स कैंडी का मासिक उत्पादन 1250 टन था। कंपनी ने मांग को पूरा करने के साथ-साथ पल्स कैंडी के नए स्वाद भी बाजार में उतारे। आज, कंपनी का वार्षिक कारोबार 6600 करोड़ रुपए है और यह हर साल 12 से 14% की दर से बढ़ रहा है। 2015 में, इसका मूल्य 300 करोड़ रुपए था।
पल्स कैंडी के प्रचार का नारा। पल्स कैंडी के प्रचार के लिए, कंपनी ने दुनिया भर में एक ही नारा चलाया। एक संक्षिप्त पंच लाइन के माध्यम से, पल्स कैंडी की ब्रांडिंग को बढ़ावा मिला। भारत भर में लॉन्च के बाद, टीवी, समाचार पत्रों, और अन्य माध्यमों पर “प्राण जाए पर पल्स न जाए” नारे ने बाजार में इसकी मांग को बनाए रखा।