Sunday, April 20, 2025
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गरीबी, मजदूरी और कठिन संघर्ष के बाद विनोद कुमार सुमन का IAS अधिकारी का सफ़र

(Influencer Media) : उत्तराखंड में सेवारत सौम्य और व्यवहार कुशल  IAS विनोद कुमार सुमन की जीवनी हमें सिखाती है कि कठिन परिश्रम, समर्पण और दृढ़ निश्चय से हम अपने जीवन में किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। उनकी कहानी उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत है जो कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं और अपने सपनों को साकार करना चाहते हैं। उनकी यात्रा हमें यह याद दिलाती है कि अगर हमारे इरादे मजबूत हैं, तो कोई भी मुश्किल हमें हमारे लक्ष्य से दूर नहीं कर सकती।

उत्तर प्रदेश के भदोही जनपद के खांऊ गांव में अत्यंत निर्धन किसान परिवार में जन्मे विनोद कुमार सुमन की जीवनी गरीबी और संघर्षों से ओतप्रोत रही है। परिवार की आजीविका का एकमात्र साधन खेती -बाड़ी ही रही , बहुत कम खेती होने के चलते पर्याप्त उपज नहीं निकल पाती थी। थोड़ा -बहुत अनाज की बिक्री के बाद भी घर का गुजारा मुश्किल से चल पाता था। पूरे परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए सुमन के पिताजी को खेती-बाड़ी के साथ-साथ कालीन बुनने का काम करना पड़ता था।

विनोद कुमार सुमन की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल से हुई। वो पढाई के साथ -साथ अपने पिताजी के साथ काम में  हाथ बंटाते थे। परिवार में  “पांच भाई और दो बहनों में सबसे बड़ा होने के चलते परिवार की जिम्मेदारी में पिता का हाथ बंटाना उनका ही दायित्व था।” वो पढाई में बहुत अच्छे थे लेकिन परिस्थितियां उनकी पढाई में बाधा बन रही थी लेकिन वो किसी भी हाल में अपनी पढ़ाई भी नहीं छोड़ना चाहते थे। जैसे -तैसे करके उन्होंने इंटर पास किया पर आगे की पढ़ाई के लिए उनके सामने बड़ी आर्थिक समस्या खड़ी हो गई। उनके परिवार के पास बा -मुश्किल दो वक़्त का खाना खाने के लिए भी बहुत संघर्ष की नौबत आ गई थी ।

इण्टर पास होने के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने और अपने सपनों को साकार करने की तीव्र इच्छा शक्ति के चलते अपने माता-पिता और घर को छोड़कर उन्होंने शहर की ओर जाने का रुख किया। उनके पास केवल वही कपड़े थे जो उन्होंने पहने हुए थे, और कुछ नहीं। आर्थिक तंगी से जूझते हुए, वो  ऐसी जगह जाना चाहते थे जहां उन्हें कोई नहीं पहचानता था। किस्मत उन्हें गढ़वाल के  श्रीनगर लेकर आ गई, उन्होंने यही रहकर कुछ करने का मन बनाया। श्रीनगर  पहुंचते-पहुंचते उनके पास पैसे खत्म हो गए थे,  मजबूर होकर, उन्होंने एक मंदिर के पुजारी से मंदिर में रहने के लिए शरण ली, अब उनका रहने का ठिकाना मंदिर का प्रांगण बन गया। अगले दिन, वे काम की तलाश में निकल शहर में निकल पड़े।

उन दिनों श्रीनगर बाजार में  सुलभ शौचालय का निर्माण कार्य चल रहा था। निर्माण कार्य करने वाले ठेकेदार से बहुत विनती करने के बाद उनको वहां मजदूर का  काम मिल गया, उस समय उन्हें प्रतिदिन 25 रुपये मजदूरी मिलती थी। उन कठिन दिनों को याद करते हुए वे बताते हैं कि कुछ महिने तक उन्होंने मंदिर के बरामदे में बोरी बिछाकर और एक चादर ओढ़कर रातें गुजारीं। इस दौरान वे मजदूरी से मिले पैसों से अपना पेट भरते रहे ।

कुछ महीनों तक मजदूरी करके इसी तरह जीवन गुजारने के बाद, उन्होंने आगे की पढाई जारी रखने का फैसला किया और उसी शहर के विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने का फैसला किया। उन्होंने श्रीनगर गढ़वाल विश्वविद्यालय में बीए प्रथम वर्ष में दाखिला लिया और गणित, सांख्यिकी और इतिहास विषय चुने। वो गणित विषय  में अच्छे थे, इसलिए उन्होंने कुछ छात्रों को रात में गणित विषय में ट्यूशन पढ़ाने का फैसला किया। दिन में मजदूरी करते और रात में ट्यूशन पढ़ाते हुए धीरे-धीरे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगा और, फिर वे अपने पिताजी को कुछ पैसे भेजने लगे। सन 1992 में प्रथम श्रेणी से बीए पास करने के बाद, उनके पिताजी ने उन्हें इलाहाबाद लौटने के लिए आग्रह किया। वे पिताजीकी बात को मानते हुए पढाई के लिए इलाहाबाद लौट गए, फिर उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राचीन इतिहास में एमए किया। इसके बाद 1995 में उन्होंने लोक प्रशासन में डिप्लोमा किया और प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी में जुट गए।

पढाई के बाद सबसे पहले उनकी महालेखाकार कार्यालय में लेखाकार के पद की सरकारी नौकरी लग गई। नौकरी लगने के बाद भी उन्होंने तैयारी जारी रखी और 1997 में उनका उत्तर प्रदेश में पीसीएस में चयन हो गया, पीसीएस में नौकरी मिलने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। फिर उत्तर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र को अलग कर उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ। पीसीएस की नौकरी में उन्हें उत्तराखंड राज्य आवंटित हुआ, उन्होंने उत्तराखंड में एसडीएम, एडीएम,  सिटी मजिस्ट्रेट के अलावा गन्ना आयुक्त, निदेशक समाज कल्याण, सचिव मसूरी -देहरादून विकास प्राधिकरण सहित कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया।

राज्य सरकार में तमाम महत्वपूर्ण पदों पर सेवा देने के बाद उनकी पदोनत्ति 2007 में आईएएस कैडर पर हुई । वो अल्मोड़ा, चमोली और नैनीताल जिलों में जिलाधिकारी के पद की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। इसके बाद विभिन्न विभागों में विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए अपर सचिव, प्रभारी सचिव के बाद  कृषि एवं किसान कल्याण, सचिवालय प्रशासन, सामान्य प्रशासन, शहरी विकास और प्रोटोकॉल विभाग के सचिव भी रह चुके हैं।  वर्तमान में वित्त सचिव एवं आपदा प्रबंधन विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

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